_."क्या फर्क पड़ता है..??"._
कोई परिंदा ज़िंदा है, कोई दरिंदा ज़िंदा है...
चले जाओ कारगिल की घाटी में,
अभी वो आवाज़ ज़िंदा है...
चल जाएगी जिस दिन ये, गुमनामी की हवा
किसी की मां परेशान है, तो किसी की दिलरुबा
फिर भी यही होगा क्या फर्क पड़ता है..??
कही स्वार्थ है, तो कहीं कोरोना है...
ऐ दुनिया वालो याद रखना..
अभी भी ज़मीं है, और तारो तक जाना है..
कभी भारत पुराना था, नया भारत बनाना है...
फिर भी यही होगा क्या फर्क पड़ता है..??
कुछ लोग कायर हैं, कुछ लोग कायर थे..
जलियावाला बाग के पीछे भी जनरल डायर थे.
आखिर चली गई ना, मासूम लोगो की जाने..
कोई खाली हाथ, तो कोई बेहथियार थे..
फिर भी यही होगा क्या फर्क पड़ता है??
यह पहली बार थोड़े ही था....
दक्खन, कारगिल में भी हुआ है..
द्रोण के चक्रव्यूह को सिर्फ अभिमन्यु ने ही तोड़ा है..
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को भी हमने खोया है...
ना जाने क्यूं, दिल लिखते लिखते रोया है..
फिर भी यही होगा क्या.........................??
:- गौरव शाक्य
05:57 pm
22 August 2020
1 Comments
👌
ReplyDeleteKahiye janaab.!!