Poems....

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वो दिन थे कुछ और, वो घड़ियां अजब सी।

 वो दिन थे कुछ और, वो घड़ियां अजब सी।



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और सब कुछ बिखर जाने के बाद इस प्रेमी ने उठाई कलम और जोड़ना शुरू किया मन के टूटे हुए तारों को। मन में बहुत सारे ख्वाब की अर्थियां वास करने लगी।

मैं समझता हूं कि रिमझिम सी बारिशों में ख्वाब तो उनके भी भीग रहे होंगे। जिसकी नाव के चप्पू एक मेरे हाथ में तो एक उनके हाथ में था।

फिर ये आंखें किसी नई बारिश में हरी नहीं हुईं, फिर कोई नई बारिश वैसे रिमझिम नहीं हुई जो 6 साल पहले हुई थी।

ये आंखें उन आंखों में कुछ यूं समायीं थी जिनके सपने और मंजिल कभी 2 अलग नहीं थे।

मुझे नहीं लगता की मेरे जैसे रेगिस्तान को वैसी किसी अन्य बारिश की जरूरत है, मुझे वो स्कूल की बारिशों में भीगना था।

तब से ये रेगिस्तान सा लड़का प्यासा रहा एक प्रेम को, एक बारिश को अब और बरसना नहीं था।

सुनो,

   मैं वहीं हूं जहां से तुम आगे बढ़ गए थे, वो मेरा नाम पूछने से मेरे नाम सुनके दिमाग में हलचल होने वाला जो दौर देखा था। मैं अभी उसी दौर में जी रहा हूं। कभी स्कूल के दिन याद आएं तो याद करना Rishabh Rastogi की Maths के जटिल प्रश्नों के हल बताना।

तुम्हारा स्कूल की Vice Head Girl बनना मतलब मेरा गुरूर बढ़ना। 🤴🏻

उन हजारों यादों में तुम्हारे लिए बचा के रखा है मैंने हमारा समय, जिसे तुम लेकर जा चुके हो। ⌛

जिसकी वो शीत लहर में की मुलाकात का अलविदा कहना, 🗻

जिसका पतझड़ आकर वापस न जाना 🍁,

जिसका शाम होते तुम्हारे चित्र दिखना, 

7 साल हो गए मुझे लगता है मैं जी तो रहा हूं, खैर दिन में नहीं रात में। 

चलो आज के अल्फाज़ यहां खतम करते हैं। 👋🏻

Take care 🍂🍁

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