मेरा यादगार पतझड़
यूं तो लिखते मुझे 6 साल ही हुए हैं, 3 किताबों की रचनाओं से लेकर अन्य कई कविताओं, ग़ज़लों को लिखा मैंने,
हां ज़रूर लिखना तो सब कुछ चाहा मैंने,
पर खुद के लिए शब्द भी न लिख पाया मैंने।
मैं क्या ही लिखूं इन रद्दी से कागज़ों 📄 पर तुम्हारे उस नूर को... तौहीन होगी तुम्हारे गाल पे उन तिलों की जो कागज़ों पर उतारा तो।
पर नीयति ने कुछ ऐसा खेल खेला है जिसमें मेरे लिखे ✍🏻 शब्द भी शायद तुम तक नहीं पहुंचते।
हां ज्ञात है मुझे कि हर पतझड़ 🍂🍁 के बाद नई पत्तियां 🌿 आती हैं लेकिन क्या वो वही पत्तियां 🌿 होती हैं जो पहले टूट चुकी हैं 🍂, नहीं।
असल में वो पत्तियां होती हैं जिसने पिछले मौसम की पत्तियों की जगह छीनी है ❤️🩹।
यदि कोई पेड़ 🌳 दूसरी पत्तियां 🌿 न लाए तो ज़माना उसे कहेगा व्यर्थ वृक्ष जिसने उन पिछली पत्तियों 🍂 की जगह किसी अन्य पत्तियों को नहीं दी।
मैं भी यही वृक्ष हूं। 🍁
पर क्या सही है.? एक ही बार रिमझिम 🌧️ सा सावन देखना, नहीं। उसे हर मौसम नई पत्तियां🌿 लानी चाहिए।
मैं नहीं हुआ जो अगली बार देखने वाला वो रिमझिम बरसता सावन देखने वाला पेड़। मुझमें मेरा यादगार पतझड़ बसा है। 🍁🍃
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Kahiye janaab.!!