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अपनों में गैर..!! Gaurav Shakya


अपनों में गैर..!!

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मैंने खाली खाली काफी कुछ तो,
शहर देखे हैं।
अपनों में भी काफी कुछ तो,
गैर देखे हैं।
है छिपा मेरे अंदर,
किसी चीज का समंदर,
उस समंदर में कंकड़,
हजार फेके हैं।
मैंने अपनों में भी काफी कुछ तो,
गैर देखे हैं।
मैंने दोस्तो में चलते हुए,
बैर देखे हैं।
..
मेरी राह में एक शख्स था,
जो चल बसा प्यासा,
उस राह में पाए कई,
हजार ठेके हैं।
मैंने अपनों में भी काफी कुछ तो,
गैर देखे हैं।
महंगे बूट में भी गंदे काफी,
पैर देखे हैं।
..
ज़माने के डर से,
जब निकला नहीं घर से,
इस जालिम सी दुनिया ने,
सलीके नहीं सीखे हैं।
मैंने अपनों में भी काफी कुछ तो,
गैर देखे हैं।
ये दुनिया बस जलने की,
बदबू से महके है।
..
ज़माने भर के लोगों को,
है देखा दिल की आंखों से,
नजरें कहीं और जाती हैं,
आंखें वो सेक लेते हैं।
मैंने अपनों में भी काफी कुछ तो,
गैर देखे हैं।
दोस्ती में भी भेड़ संग,
शेर देखे हैं।
..
कहीं वो वादे करते हैं,
कहीं वो तोड़ देते हैं।
अच्छे खासे इंसान को,
वो अकेला छोड़ देते हैं,
मैंने अपनों में भी काफी कुछ तो,
गैर देखे हैं।
तैरने वाले को डुबोकर,
खुद वो तैर लेते हैं।
..
सही पते पर चलने वालों को,
भरोसा इस कदर देंगे,
खुद को गलत समझा कर
वो रास्ता मोड़ लेते हैं।
मैंने अपनों में भी काफी कुछ तो,
गैर देखे हैं।
ऐसे लोगों के बाजार में बिकते,
ढेर देखे हैं।
..
जो चलते चलते रास्ते पर,
मूंह फेर लेते हैं।
जिस्मानी सौदे कर वो,
मोहब्बत नाम देते हैं
करके बदनाम गांव में उसको,
सुबह वो शहर देखे है।
मैंने अपनों में भी काफी कुछ तो,
गैर देखे हैं।
मेरे चाय के प्याले में कोई तो,
जहर घोले है।
..
Gaurav Shakya

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2 Comments

Kahiye janaab.!!