Poems....

6/recent/ticker-posts

गांव में कलयुग

          

            गांव में कलयुग

कभी पड़ोसी को, घर पर बुलाते
अब सबको बुरा, लगने लगा है
चला जा गुमनामी के घर
 पर मत जा उसकी, चौखट पर
हर द्वार पर CCTV लगने लगा है
गांवों में भी कलयुग छाने लगा है

ना वो प्यार, ना वो दोस्ती
सब कुछ, बिखरने लगा है
वो गांव में एक, पेड़ के नीचे
रहते थे घंटों, एक दोस्त के पीछे
अब तो वो पेड़ भी सोने लगा है
गांवों में भी कलयुग छाने लगा है

दो खेतों में, एक मेढ़ के पीछे
भाई भाई को, चुभने लगा है
एक माली को, पेड़ो से
और हल को अपने, बैलों से
अब तो बहुत कुछ, बिछुड़ने लगा है
गांवों में भी कलयुग छाने लगा है

पहले हर घर में, मंदिर बने थे
अब तो भजन भी कम, होने लगा है
साधु संत भी, करें तो करें क्या
घरों में रक्त, और मंदिर में भक्त 
ढोंगियों का खुलासा, होने लगा है
गांवों में भी कलयुग छाने लगा है

कुछ लहर सा, बहने लगा है
और जहर सा, बरसने लगा है
मत रह, आशियानों के शहर में
कौन रहेगा इस, बिखरते कहर में
 र घर में पहरा, लगने लगा है
 गांवों में कलयुग छाने लगा है
                          
                                    गौरव शाक्य
                         07:50 pm
                        10/11/2020

Post a Comment

1 Comments

Kahiye janaab.!!